अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले पर आए ऐतिहासिक फैसले के छह साल बाद अब एक नया और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई को प्रभावी तरीके से रोकने की कोशिशें की गई थीं। उन्होंने कहा कि कुछ वकीलों द्वारा जानबूझकर अदालती प्रक्रिया में रुकावट पैदा की गई और यहां तक कि बॉयकॉट करने जैसा कदम भी उठाया गया।
तुषार मेहता यह बयान इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘केस फॉर राम – द अनटोल्ड इनसाइडर्स स्टोरी’ नामक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम के दौरान दे रहे थे। उनके इस बयान ने एक बार फिर से इस ऐतिहासिक विवाद और इसके न्यायिक सफर को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।
सुनवाई रोकने की हुई कोशिश
सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि वर्षों तक चले इस मामले में कई बार ऐसी स्थिति पैदा की गई, जिससे सुनवाई आगे न बढ़ सके। उन्होंने कहा कि:“कभी परोक्ष रूप से, तो कभी बहुत स्पष्ट तरीके से, सुनवाई को रोकने के प्रयास किये गए। कई बार यह कोशिशें रणनीति के तहत की गईं।”मेहता ने बताया कि स्थिति तब और चौंकाने वाली हो गई जब दो प्रसिद्ध वकीलों ने सुनवाई से ही वॉकआउट कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा आमतौर पर संसद में देखा जाता है, अदालत में नहीं।
2019 का ऐतिहासिक फैसला
9 नवंबर 2019 को तत्कालीन चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस विवाद पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। अदालत ने:
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विवादित 2.77 एकड़ भूमि राम मंदिर निर्माण के लिए देने का आदेश दिया।
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और मुस्लिम पक्ष को मस्जिद निर्माण के लिए अलग से 5 एकड़ भूमि देने का निर्देश दिया।
इस फैसले के बाद वर्षों से विवादों में घिरे अयोध्या में नई शुरुआत हुई। इसके बाद भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ।
राम मंदिर का उद्घाटन
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन हुआ। इस ऐतिहासिक अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति और देश-विदेश में धार्मिक उत्साह देखा गया। यह क्षण करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं से जुड़ा रहा, क्योंकि अयोध्या को राम का जन्म स्थान माना जाता है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह खुलासा?
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यह बताता है कि न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिशें कितनी गंभीर स्तर तक पहुंच सकती हैं।
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यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निर्णयों के महत्व को फिर से रेखांकित करता है।
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मामला सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि संवैधानिक और न्यायिक प्रणाली की मजबूती का प्रतीक है।
राम मंदिर विवाद भारत के इतिहास, राजनीति और समाज का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। अब तुषार मेहता का यह खुलासा इस अध्याय को नया दृष्टिकोण देता है और यह समझने में मदद करता है कि फैसले तक पहुंचने का रास्ता कितना कठिन और संवेदनशील था।


